इस्लाम में नारीत्व के साथ छलावा

                                इस्लाम के कानून के अनुसार नारी को काम वासना पूर्ति के लिए एक खिलौने के स्तर तक गिरा देने को प्रेरित करता है| इस्लामी कानूनों को इस प्रकार गढा गया है कि प्रभुत्व कि ललक बना नारी का आकर्षण मजहबी निति को लागू करने के लिए नारी कि स्वाधीनता न्यूनतम रह जाए| तथापि, बलात् मतारोपण के द्वारा मुसलमानों को आश्वस्त किया जाता है कि इस्लाम ही वह प्रथम अजहब है जिसने स्त्रियों को निम्लिखित अधिकार दिए :-


१. संपत्ति का अधिकार ( कोई कानून जब तक कानून नहीं है जब तक वह सभी पर सामान रूप से लागू नहीं होता |
इस प्रकार उत्तराधिकारी का कानून पैगम्बर के वंशजो पर भी लागू होना चाहिए यानी पैगम्बर कि पुत्री फातिमा पर उसी प्रभाव से लागू होना चाहिए जिस प्रकार यह अन्य स्त्रियों पर लागु होता है, परन्तु ऐसा नही हुआ |
हदीस संख्या ३:४३५१ (मुस्लिम) इस पर व्यापक रुप से प्रकाश डालती है
२. पति को तलाक देने का अधिकार ( हम पैगम्बरों के उत्तराधिकारी नहीं होते, हम जो पीछे छोड़ जाए है वह दान में ( दे दिया जाना) है
इस हदीस के तर्क को दो प्रकार से स्वीकार करना कठिन है प्रथम तो पैगम्बर ने दवा किया है कि वह सब लोगो के लिए व्यवहार का आदर्श है इसलिए फातिमा को उसकी पैतृक संपत्ति वंचित करना उसके प्रति एकदम अन्यायपूर्ण व् भेदभावपूर्ण कार्य है| जो कानून किसी व्यक्ति के विरुद्ध सिर्फ इसलिए भेदभाव पूर्ण नहीं हो जाता है कि वह पुरुष अथवा स्त्री( फातिमा) या अन्य कोई पुरुष कानून बनाने वाली का सम्बन्धी है|
दूसरा फातिमा को अपने पैतृक संपत्ति के शीघ्र आवश्यकता थी और उसका पति अली भी उसका सामान रुपस ए इच्छुक था| मामला निर्णय के लिए खलीफा अबू बकर के पास भेजा गया, उसने पैगम्बर कि संपत्ति से कुछ भी देने से इंकार कर दिया |
इस कारण अबू बकर से क्रुद्ध हो गयी और उसका परित्याग कर दिया और जीवन पर्यंत उससे बाट नहीं की| जब वह मरी तो उसके पति अली बी, अबू तालिब ने रात्री में ही उसे दफना दिया
उसने अबू बकर को फातिमा की मृत्यु की सूचना भी नहीं दी और जनाजे की नमाज़ भी स्वयं ही संपन्न कर दी|
इससे स्पष्ट है की यदि पैगम्बर अपनी पुत्री को ही पैतृक संपत्ति से कर सकता है तो अन्य स्त्रियों को इस्लाम के उत्तराधिअकारी के कानून से कोई अधिक आशा नहीं करना चाहिए जो केवल कागज पर ही अच्छा दिखाई देता है
परन्तु प्रभाव में ये अधिकार जाली ही है क्योकि स्त्रियों को निम्नलिखित कारणों से इन अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकती :-
क: अल्लाह ने स्त्रियों पर परदे का लागु किया है, अर्थात उन्हें सामाजिक जीवन मे भाग नहीं लेना चाहिए
“ और ईमान वाली स्त्रियों से कहा की अपनी निगाहे नीची रखे और अपने शर्मगाहो की रक्षा करे और अपना श्रृंगार न दिखाए सिवाय उसके जो जाहिर और अपने सिनो (वक्ष स्थल) पर अपनी ओढनिय से आँचल डाले रहे और वे अपने श्रृंगार किसी पर जाहिर ना करे ..........
स्त्रियों को उनके अधिकार से वंचित करने के लिए कुरान में यह प्राविधान है:- “ पुरुष स्त्रियों के निगरां और जिम्मेदार है, इसीलिए की अल्लाह ने एक को दूसरे पर बड़ाई दी है............ तो और जो स्त्रियां नेक होती है वे आज्ञा का पालन करती है ............ और जो स्त्रिया ऐसी होजिनके सरकशी का तुम्हें भय हो, उन्हें समझाओ, बिस्तरों में उन्हें तन्हा छोड़ दो, और उन्हें मारो
चूँकि एक स्त्री के लिए पर्दा अनिवार्य है और वह घर ए ही प्रतिबंधित है औत पुरुष उसका प्रबंधक है, और यदि स्त्री उसकी आज्ञा का उलंघन करे, तो पुरुष को उसे पिटने का अधिकार प्राप्त है, उसके संपत्ति के अधिकार एक ड्रामा बाजी ही है| वे अधिकार ऐसे ही है जैसे आत्मा के बिना शारीर, और तिरो के बिना कमान|
ख. जैसा की पाद टिपण्णीयो में कहा गया है की एक स्त्री के पास पुरुष को तलाक देने का कोई क़ानूनी अधिकार नहीं है किन्तु खुला से यह अर्थ निकालता है की श्री ऐसा कर सकती है
तथापि पुरुष अपने आप को वैवाहिक बंधन से बिलकुल स्वतन्त्र रुप से इच्छानुसार मुक्त कर सकता है परन्तु एक पत्नी को यह लक्ष प्राप्त करने के लिए एक अत्यंत पेचीदा क़ानूनी प्रक्रिया से गुजरना हित है
इसके अतिरिक्त यदि एक स्त्री पूर्ण रूपसे औचित्य के बिना पग उठाती है तो उस पर खुदा का कोप एवं फरिस्तो का कहर टूट सकता है
उत्तराधिकारी के कानून एक पुरुष को दो स्त्रियों के बराबर मानता है
( ४ अनानिसा : ११) साक्ष्य का कानून इससे भी अधिक सख्त है: न केवल दो स्त्रियों की साक्ष्य एक पुरुष के बराबर होता है कितु जहा साक्ष्य के लिए पुरुष उपलब्ध हो तो स्त्रियों को साक्ष्य देने की अनुमति नहीं है








क्रमश: ............

2 टिप्‍पणियां:

saddam ने कहा…

यहाँ पर इस्लाम में जो हसियत औरतों की बताई गई है गलत है ..जितनी इज्ज़त और ताकत इस्लाम में औरतों को दी गई है वो कहीं और नही है ...बुरका औरतों या लड़कियों की सुरक्षा के लिए होता है ..कैद के लिए नही ...इस्लाम में तो बेटी को बाप की संपत्ति में भी अधिकार दिया गया है ... ऐसा मैंने आज तक किसी धर्म नही देखा ......माँ के परों में जन्नत बताई गई है .....इस्लाम में तो गैर औरत से हाथ भी मिलाना मना है ..इसका उद्देश्य केवल औरतों और लड़कियों की सुरक्षा है ...हज़रात मोहम्मद सल्लाही अल्लेही वास्सलम ने तो यहाँ तक कहा है की अगर किसी ने अपनी बहन बेटी की सही से परवरिश कर दी और शादी कर दी तो जन्नत में उसका घर पक्का है ....

बेनामी ने कहा…

जब कोई व्यक्ती अच्छा होता हैं तो मालुम हैं आपको उससे जलने वाले अफवाह उराते हैं ताकी वह बदनाम हो जाय

यहा यही हो रहा हैं
या उदाहरन जब किसी एसे जानवर को देखा जाए सिका थोरा नाम सुना हो जब सामना हुआ तो आप जल्दी जल्दी यानी पुरी तरीके से देखे नही और और वह देख ने मे कुछ अजी ब था अब आप ने ये बात फैलादी की बाप रे ये जानवर तो बहुत खतरनाक होता हैं इत्यादी-इत्यादी कृप्या पुरी तरीके व सही जानकारी प्राप्त करे फिर उसके बारे मे बताए
तो यह एक सच्चे मानव व सच्चे आदमी कि पहजान होगी अन्यथा आपकी पहचान वैसा ही होगा जैसा अभी मेरे जेहन मे हे मालुम क्या मुर्ख मुर्ख डबल मुर्ख