इस्लाम में यौन मनोविज्ञान कि अवधारणा 2

निष्ठुर, नीरस और निर्दयी लोग ही युध्द जीतते है, पौरुषहीन लोग तो रक्त देखकर ही बेहोश हो जाते है | पैगम्बर बहुत ही गहरी दृष्टि रखते थे, उससे उन्हें एक मनोवैज्ञानिक तंत्र को भुनाने कि छमता दी, जिसे मै स्त्री का आकर्षण बनाम प्रभुत्व कि प्राप्ति को फिर चाहे प्रेम हो या घृणा और न्याय हो या अन्याय, तो प्रभुत्व कि ललक के आगे स्थापित आचार संहिता महत्वहीन हो जाती है| इसीलिए पैगम्बर मोहम्मद को पुरुषों का दर्जा स्त्रियों के दर्जे के अपेक्षा ऊँचा रखना पड़ा | अत: उन्होंने एक ऐसी योजना खोज निकाली जिससे काम पिपासा कि तृप्ति पुरुष के आदेशानुसार हो, जिसने पुरुष को तानाशाही के अधिकार से सज्जित किया और सती को कामुकता का सिर्फ खिलौना बना दिया | पुरुष को क़ानूनी रुप से व्यक्तिगत वेश्यालयो के स्थापना का अधिकार दे दिया, जिसका नाम हरम रख दिया | विलासिता पूर्ण दृष्टि के इन घरों को न केवल “ परम दयालु अल्लाह” कि पूर्ण स्वीकृति थी बल्कि ये ही मुक्ति के एक मात्र उपाय भी थे क्योकि जन्नत में प्रवेश पाने के लिए ही मुसलमान अल्लाह मुहम्मद के आदेशो का पालन करता है, ऐसी जन्नत जहाँ पर परम सुंदरी कामिनियाँ तथा लड़के रहते है जो कि काम पिपासा कि शांति के अदभुत स्रोत है|
यद्यपि “स्त्री का आकर्षण बनाम प्रभुत्व कि ललक “ मोहम्मद का उद्देश्य सफल बनाने के लिए एक प्रभावी योजना थी परन्तु उसको अरब में लागू करना एक कठिन कार्य था क्योकि अरब कि भूमि में मातृसत्तात्मक पद्धति थी जिसमे माताओ और दादियो को अधिकार थे तथा वे आदर कि दृष्टि से देखि जाती थी|
इस्लाम कि यह निति रही है कि जहां कही भी उसने प्रभुत्व पाया है वहाँ के इस्लाम पूर्व कि संस्कृति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया | अरब भी इसका अपवाद नहीं है |
यदि कोई इतिहास का अवलोकन करे तो उसे पता चलेगा कि अरब में इस्लाम के उदभव के पहले अनेक रानियाँ थी | यह संभव नहीं हो सकता था, यदि वहाँ पर स्त्रियों को मुलभुत नागरिक के अधिकार न मिले होते|
हम जानते है कि तिगलाथ पिलेसर  ३(७४५-७२७ ईसा पूर्व)ने जिसने असीरियन साम्राज्य कि स्थापना कि थी, सीरिया और उसके निकटवर्ती क्षेत्रो पर, कई सैन्य आक्रमण किये गए थे, अपने शासन के तीसरे वर्ष में वह अरब कि रानी जबिबी से खिराज वसूलने में सफल रहा था | अरब कि एक और रानी शमसियाह हती जिसे कि उसने अपने शासन काल में नौवें साल में विजित किया था |
पामीर के राजा जिसका नाम भारतीय शब्द उदयनाथ था, जिन्होंने प्रसिद्द फारसी शापुर को राजधानी सितेसिफोंन ( अल मदीन) कि सीमाओं तक खदेड़ा था, पत्नी जिनोबिया बहुत सुन्दर सहसी और महात्वाकांक्षी थी | उसने अपने आप को अपने पुत्र वाहब अल्लाह का प्रतिशासक घोषित करके अपने राज्य का योग्यता पूर्वक शासन किया तथा पामीर पर पुनर्विजय केलिए रोमनों के कई आक्रमणों को विफल किया, अपने आप को पूर्व कि रानी धोषित किया|
अरब कि रानियों में से सबसे अधिक प्रसिद्द सुनामिता कन्या थी| जिसकी सुंदरता ने बुद्धिमान सुलेमान को भी मोहित कर दिया था | सुलेमान को मुसलमान उस समय ईश्वर का पैगम्बर समझते थे | ऐसा विशवास है कि अरब के केदार कबीले से थी| उसे शारीरिक सौंदर्य को सुलेमान ने जो एक रसिक कवि भी था, सुरक्षित रखा| अरब कि इस सुंदरी बिल्किस को इतिहास में शीबा कि रानी के नाम से जाना जाता था| सुलेमान कि बुद्धिमत्ता कि सुनकर वह उसपर मोहित होगई थी और ढेरो उपहार लेकर उससे मिलाने के लिए यरूशलम तक गयी | भेंट वस्तुत: मादकता पूर्ण रही | बदले में बुद्धिमान सुलेमान ने शाही उपहारों के अतिरिक्त शीबा के रानी को जो कुछ भी उसने चाहा वाही उसने दिया | राजा सुलेमान ने अपने राजसी उदारता से बहुत कुछ दिया | तब वह अपने सेवको समेत अपने देश  को लौट गयी|
गाड के इस पैगम्बर को स्त्रियों के संग्रह कि अभिरुचि थी| उसने अपने हरम में अपनी ७०० पत्नियों के अतिरिक्त ३०० रखैल और जोड़ ली|
इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि शीबा कि रानी ने इस अवसर को कामुक उल्लास के रूप में मनाया| वह गर्भवती हुई तत्पश्चात एक पुत्र को जन्म दिया जो कि मैनेलिक द्वितीय के नाम से जाना गया : जिससे यहूदी के एक छोटे से अफ़्रीकी अबिले का जिसका नाम फलास था, प्रादुर्भाव हुआ, यह कबीला १८६७ ई० तक अज्ञात रहा था
उपर्युक्त वृतांत का यह दर्शाना है कि अरब कि स्त्री अपने पुरुषों की, पर्दों में रहने कि बंदिनी नहीं थी| यह परिस्थितिय इस्लाम ने स्त्रीत्व के प्रति छल करके पैदा की |

क्रमश: ......... ( अगले ब्लॉग में)      

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