इस्लाम द्वारा स्त्रियों पर लादी गयी निम्नलिखित सीमाओं को ध्यान में रखते हुए कोई भी इमानदारी से इसी निष्कर्ष पर पहुचेगा कि यश सब जान बुझ कर किया गया है ताकि स्त्रियों को कामवासना तृप्ति के खिलौने के रूप देने के लिए मानवाधिकारों से वंचित रखा जाय जिससे पुरुष समुदाय अधिकाधिक संख्या में इस्लाम में घुस जाए|
१. स्त्रियों का यह मजहबी कर्तव्य है कि वे अधिअधिक संख्या में बच्चे पैदा करे| इब्न ऐ माजाह खंड १ पृष्ठ ५१८, ५२३ के अपने “ सुनुन्” में यह उल्लेख है कि पैगम्बर ने कहा था: “ शादिया करना मेरा मौलीक सिध्दांत है | जो कोई मेरे आदर्शो को अनुसरण नहीं करता, वह मेरा अनुयायी नहीं है| शादिया करो ताकि मेरे नेतृत्व में सर्वाधिक अनुयायी हो जाय फलस्वरूप में में दूसरे समुदायों से ऊपर अधिमान्यता प्राप्त करूँ |” इसी प्रकार मिस्कत खंड ३ में पृष्ठ ११९ पर इसी प्रकार कि एक हदीस है: “ कयामत के दिन मेरे अनुयायियों कि संख्या अन्य किसी भी संख्या से अधिक रहे, और इस उद्देश्य कि पूर्ति स्त्री जाती पर मात्र संतान उत्पत्ति के अनन्य भार को डालकर संभव थी|”
स्पष्टत: एक स्त्री जो दर्जन भर बच्चे कि माँ होगी | उसके मस्तिष्क में तो इसी भय से आक्रांत रहने कि संभावना है कि यदि उसका पति उसे छोड़ दे तो उसका क्या होगा ?? पत्नी को अपने अंगूठे के निचे रखने के लिए यह भय पर्याप्त शक्तिशाली अस्त्र है|
२. दूसरी शर्त जो इस्लाम में स्त्रियों कि स्थिति का निर्धारण करती है वह कुरान में ५७ अल हदीद २७ में दी गयी है | “ संसार त्याग कि प्रथा उन्होंने स्वयं निकाली हमने इसका आदेश कभी नहीं दिया था, दिया था तो बस अल्लाह कि प्रसन्नता चाहने का, तो उन्होंने उसका जैसा पालन करना चाहिये था नहीं किया|”
साधारण शब्दों में इन आयतो का तात्पर्य है कि ईसाइयों ने बैरागी का पालन करके प्रभु कि इच्छा कि अवज्ञा कि है, क्योकि पुरुष द्वारा स्त्रियों का सम्भोग अल्लाह का मनोरंजन है|
इसी प्रकार सती कुछ भी नहीं है किन्तु वह तो पुरुष कि भोग बिलाश कि वास्तु है | वास्तव में प्रतेक स्त्री को यह ज्ञान है वह आदर का व्यवहार चाहती है, परन्तु इस्लाम जो एक सेमिटिक दर्शन का अनुशरण करता है जिसके अनुसार एक पुरुष को उसके आदेशानुसार उसके कामवासना कि पूर्ति होना चाहिए | यही कारण है कि इस्लाम में स्त्री के सम्भोग में सहमती कि कोई अवधारणा नहीं है | इस्लाम में एक स्त्री पुरुष कि जोत होती है और एक पुरुष को उसे स्विच्छा पूर्वक उपयोग करने का अधिकार है | यही कारण है कि इस्लामी कानून का उद्देश्य पुरुष कि प्रभुता है, स्त्री के ऊपर तद्नुरूप अपमान आरोपित हो जाता है |
निम्नलिखित आयत से पाठक इस तथ्य का निर्णय कर सकते है |
“ उन स्त्रियों के भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार है जैसे कि स्वयं पर उनपर है, हाँ पुरुषों पर उन पर एक दर्जा प्राप्त है |” - (२ अल बकरह २२८)
यह आयत बहुत ही विवादस्पद है और इस्लामी कट्टरपंथी उसे स्त्री एवं पुरुषों कि समानता सिध्द करने के लिए खीचते तानते रहते है| इसलिए इसकी सच्चाई को प्रदर्शित करने के लिए दूसरा हदीस है :
“यदि स्त्रिया आप के आदेशो का पालन करे तो उन्हें उत्पीडित न करो ........... उनकी बात ध्यान से सुनो, उनका आप पर अधिकार है कि आप उनको भोजन एवं वस्त्रों का प्रबंध करो” – ( इब्न ऐ मजह खंड १ पृष्ठ ५१९)
इसी प्रकार स्त्री के अधिकार उनके भरण पोषण तक ही सिमित है बशर्ते कि वह अपने पुरुष कि अग्या का पालन करे | इस्लाम सा सामान्य विश्वास है कि पुरुष स्त्री के अपेच्छा क्षेष्ठ होता है | वास्तव में कुरान का कानून इस विचार कि पूर्णतया पुष्टि करता है |
“ .............................. स्त्रियों में से जो तुम्हारे लिए जायज हो दो दो, तीन- तीन, चार-चार तक विवाह कर लो |”
( ४ अननिसा ३)
यह पुरुष को क़ानूनी अधिकार दिया गया है कि वह एक समय में अपनी पसंद कि चार स्त्रिया रख ले | मुस्लिम विद्वान बहु विवाह कि लज्जा से बचने के लिए इस आयत कि भिन्न भिन्न ब्याख्याये करते है| उदाहरण स्वरूप वे कहते है कि स्त्रियों को बहु विवाह ( एक समय में एक से अधिक पति ) कि अनुमति इस लिए नहीं दी गयी है क्योकि बच्चो के पिता का पता लगाना संभव नहीं |
इन सबके ऊपर रखैलो के विषय में इस्लामी कानून तो एक पुर्रुष को इतनी स्त्रिया हरम में रखने कि अनुमति देता है जीतनी वह रख सकता है | उदाहरण स्वरूप भारत के अकबर महान के हरम में ५००० रखैल थी और उनके पुत्र जहागीर के हरम में ६००० रखैल थी | इनके लिए सिर्फ एक ही नाम दिया जा सकता है वह है “ निजी वैश्यालय | तो भी मुसलामान विद्वान नैतिकता और स्त्रियों के अधिकारों कि बातें करते है|
३. हमें यह बताया गया है कि पुरुषों के स्त्रियों पर अधिकार है, वैसे स्त्रियों के भी पुरुषों पर अधिकार है| इसे बराबरी के प्रमाण के रूप में उल्लेख किया जाता है| वास्तव में यह अत्यंत भ्रामक है क्योकि उसके पारस्परिक अधिकारों का सम्बन्ध ही पुरुष को मालिक और स्त्री को दासी बना लेता है|
स्त्रियों को पुरुषों के ऊपर एक ही अधिकार है, वह अहि भरण पोषण का अधिकार |
यदि कोई पति अपने पत्नी को पत्थारो कि गठरी लाल पर्वत से उस काले पर्वत तक ले जाने को कहे तो उस स्त्री को इसे पुरे मनोयोग से पालन करना चाहिए | ( इब्न ऐ मजाह खंड १ अध्याय ५९२ पृष्ठ ५२० )
४. अल्लाह कसम, मोहम्मद का जीवन कौन नियंत्रित करता है, एक स्त्री अल्लाह के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं कर सकती जब तक उसने अपने पति के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया है, यदि वह स्त्री ऊंट पर सवारी कर रही हो और उसका पति इच्छा प्रकट करे तो उस स्त्री को मना नहीं करना चाहिए | (इब्न ऐ मजाह खंड १ अध्याय ५९२ पृष्ठ ५२० )
पुन: “यदि एक पुरुष का मन सम्भोग करने के लिए उत्सुक हो तो पत्नी को तत्काल प्रस्तुत हो जाना चाहिए भले ही वह उस समय सामुदायिक चूल्हे पर रोटी सेक रही हो|” ( तिरमजी खंड १, पृष्ठ ४२८ )
क्रमश: ............... अगले ब्लॉग में ....
4 टिप्पणियां:
अजय जी आप इस्लाम की कुरीतियों को उजागर करके मानवता पर तो उपकार कर ही रहे है साथ में भारत देश क़े लिए बहुत बड़ा कार्य कर रहे है
इतनी अच्छी गहरी जानकारी युक्त पोस्ट क़े लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
अजय जी नमस्कार, कृपया आप इसको इमगे फोर्मत मे न डाला करें, इससे refernce मे हम लोगो को सुविधा होगी।
शेष आपका कार्य स्त्री जाति के हित मे है, मानव जाति के हित मे है।
अजय जी नमस्कार, कृपया आप इसको image format मे न डाला करें, इससे refernce मे हम लोगो को सुविधा होगी।
शेष आपका कार्य स्त्री जाति के हित मे है, मानव जाति के हित मे है।
इस्लाम क़ा अर्थ एयासी, ब्याभिचार को बढ़ावा देना यानी उनके जन्नत क़ा वर्णन भी शर्मनाक है केवल ब्याभिचार को शिस्टाचार बताना यही इस्लाम है ,एक बार अबुबकर किसी महिला से आपने घर में ही आपत्ति जनक स्थिति में था तब-तक उसकी पत्नी आ गयी फिर क्या था वह उससे ऊब गयी थी प्रतिदिन किसी न किसी महिला को ले आता था चाकू लेकर दौड़ी अबुबकर अपनी लुंगी बढ भी नहीं पाया था भागा उआकी पत्नी ने पड़कर उसका लिंग काटने क़ा प्रयत्न किया लिंग क़ा अगला भाग काट गया --तुरंत मुहम्मद साहब को इल्हाम आया और तब से खतना शुरू करवा दिया .
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