४. गैर मुसलमानों कि हत्या :-
“ कोई आदमी जितना अधिक स्वार्थी होता है वह उतना ही अधिक अनैतिक होता है इसी प्रकार जो जाति केवल अपने ही स्वार्थ में लिप्त रहती है, वह सारे विश्व में सबसे अधिक निर्धायी और सबसे अधिक अत्याचारी होता है | ऐसा कोई रिलीजन नहीं हुआ है जो उपरोक्त द्वेशवद से अधिक चिपका हुआ हो जितना कि अरेबियन के पैगम्बर ( मुहम्मद) द्वारा स्थापित रिलीजन “इस्लाम” और अन्य कोई ऐसा रिलीजन ऐसा नहीं है जिसने इतना खून बहाए और जो एनी लोगो के प्रति इतना अत्याचारी रह हो | कुरान में एक उपदेश है “जो कि मनुष्य इन शिक्षाओ को नही मानता है, उसे मार देना चाहिए, उसे मारना एक दयालुता है “ | इस्लाम में स्वर्ग ( जन्नत), जहां कि अत्यंत सुन्दर ‘हूरें’ और अन्य सभी प्रकार के इन्द्रिय सुखो एवं अमोद – प्रमोद के साधन है, को पाने का सबसे पक्का तरीका “ गैर – मुसलमानों को मार देने के द्वारा है “ जरा इस रक्तपात के बारे में सोचो जो कि इस प्रकार के विश्वासों के परिणामस्वरूप हुए है |”
( १८ नव. १८९६ को लन्दन में दिए गए भाषण से, २०:३५२-५३)
५. एक हाथ में कुरान दूसरे में तलवार :-
“ जरा उन छोटे – छोटे संप्रदायों के बारे में सोचो जो पिछले कुछ सैकड़ो वर्षों से चलायमान मानव मस्तिष्क से उपजे है और वो ईश्वर के समीप अगणित सत्यों के ज्ञान का हेकडबाजी से दावा करते है |
इस मिथ्याभियान् पर जरा ध्यान दीजिए | इससे यही सिद्ध होता है तो यही कि ये लोग कितने अहंकारी है | और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ऐसे दावे हमेशा झूठे सवित होते है
और ईश्वर के कृपा से ऐसे दावों का सदैव असत्य होना निश्चित है | इस विषय ( इस्लाम ) में मुसलमान सबसे अलग थे |उन्होंने आगे बढ़ाने का प्रतेक कदम तलवार कि धार से आगे बढ़ाया यानी कि एक हाथ में कुरान और दूसरे में तलवार, “ कुरान स्वीकार करो या मौत” इसके अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है “ तुम इतिहाश से जानते हो कि इससे उनकी कितनी आश्चर्यजनक सफलता रही है| छह सौ वर्षों तक उन्हें कोई नहीं रोक सका और इसके बाद एक समय ऐसा आया जब उन्हें चिल्ला कर कहना पड़ा कि रुको | अन्य रिलिजनो के साथ भी ऐसा ही होगा, यदि वे ऐसे ही तरीके अपनाएंगे |
इस मिथ्याभियान् पर जरा ध्यान दीजिए | इससे यही सिद्ध होता है तो यही कि ये लोग कितने अहंकारी है | और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ऐसे दावे हमेशा झूठे सवित होते है
और ईश्वर के कृपा से ऐसे दावों का सदैव असत्य होना निश्चित है | इस विषय ( इस्लाम ) में मुसलमान सबसे अलग थे |उन्होंने आगे बढ़ाने का प्रतेक कदम तलवार कि धार से आगे बढ़ाया यानी कि एक हाथ में कुरान और दूसरे में तलवार, “ कुरान स्वीकार करो या मौत” इसके अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है “ तुम इतिहाश से जानते हो कि इससे उनकी कितनी आश्चर्यजनक सफलता रही है| छह सौ वर्षों तक उन्हें कोई नहीं रोक सका और इसके बाद एक समय ऐसा आया जब उन्हें चिल्ला कर कहना पड़ा कि रुको | अन्य रिलिजनो के साथ भी ऐसा ही होगा, यदि वे ऐसे ही तरीके अपनाएंगे |
( २८ जन. १९००, पाड्सेना कैलिफोर्निया में दिए गए भाषण से, ‘ १: ६९*७०)
६. सार्वभौमिक भाईचारा सिर्फ मुसलमानों के लिए :
“मुस्लमान विश्व व्यापी चयिचारे कि बात करते है परन्तु वास्तव में इसका मतलब क्या है ? आखिर जोकि मुसलमान नहीं है वह इस सार्वभौमिक भाईचारे में सम्मिलित क्यों नहीं किया जायेगा ? उसके तो गले काटे जाने कि संभावना अधिक है |” ( २:३८०)
७. मुसलमान मूर्तियों कि जगह कब्रों को पूजते है :-
“ मुसलमान प्राय: मूर्तियों कि जगह अपने पीरों और शहीदों कि कब्रों का उपयोग करते है ( यानी पूजते है )|” ( ३: ६१)
८. बालक रूप में ईश्वर :
“ मुसलमान द्वारा ईश्वर को एक बच्चे के रूप में होने के विचार को स्वीकार करना असंभव है | वे इसे मानाने से यह भय्संहित संकोच करेंगे | लेकिन ईसाई और हिंदू इसे आसानी से अनुभव कर सकते है | क्योकि उनके मत में बाल स्वरुप जीसस और बाल रूप श्री कृष्ण कि अवधारण है “| ( ३:९६)
शेष अगले पोस्ट में ....