सावधान ! भारत का इस्लामीकरण हो रहा है ?


हमरे देश कि राजनीती इतनी गिरे हुए स्तर तक पहुच गयी है कि दुनिया के देशों में सर्च लाईट लेकर भी खोजा जाय तो भी नही मिलेगा | जहाँ पर आम जनता को अपनी अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ने को मजबूर किया जा रहा है, वही दूसरी तरफ देश कि एक बड़ी राजनीतीक पार्टी समाज के एक वर्ग के तुष्टिकरण में लगी हुई है |
·       क्या होगा हमारे देश का ? ये भविष्य के अंधकार में खोया हुआ है ! अगर हम उस भविष्य के अँधेरे में कुछ देखने की कोशिश करते है तो, आज से एक अलग भारतीय समाज की धुधली झलक नजर आ रही है | जहाँ भारत के बहुत से राज्यों का मुस्लिमकरण हो गया है, सरकारी इमारतों पर पाकिस्तानी जैसे झंडे लहरा रहे है | आज के तथाकथित सेक्युलर नेता इस्लाम धर्म अपना कर अपने – अपने हरम में जन्नत का आनंद ले रहे है | और बचे हुए कुछ राज्यों में ये सेक्युलर नेता खून की होली खेलवा रहे है | पकिस्तान जिंदाबाद – पकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा कर जन्नत की सीढियाँ चढ रहे है | आम जनता भी अपनी आत्म सम्मान की रक्षा करने के लिए जान की बाजी लगा रही है | शेष भारत के गलियों मुहल्लो में भोपू बजवा कर आम जनता को सन्देश दे रहे है कि “ हमें भी मुस्लिम बन कर, शेष भारत का इस्लामीकरण कर देना चाहिए | क्योकि अल्लाह बहुत दयालु है |
आखिर कहा खो गयी है हमारे देश कि राजनीति ? हमारे देश के नेता धर्म के नाम पर देश को बाट रहे है| प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कि ही बात लीजिए, इन्हें तो सच्चे, ईमानदार नेता कहते है लोग, मगर ये भी तुष्टिकरण कि राजनीती में लगे पड़े है | इनका ये वाक्य कि “ हमारे देश के संशाधनो पर पहला हक मुसलमानों का है “| मै कहता हूँ कि “क्या हिंदू, सिख, ईसाई, फारसी, जैन, बौद्ध क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खेतों में जाकर घास छिलेंगे और मुसलमान सब संशाधनों का पहले उपयोग करेंगे| अगर मुसलमानों से कुछ संशाधन बचा तो मनमोहन सिंह के कृपा से शेष धर्मों के लोग उपयोग करेंगे| लानत है ऐसे मनमोहन सिंह पर जो कुर्सी के लालच में अपना आत्म सम्मान  तक इटली के राजकुमारी के आगे गिरवी रखा दिया | इसकी तुलना एक निरीह जानवर से भी कि जाय तो कम है जो अपनी आत्म सम्मान के लिए जान कि बाजी तो लगा देता है | मनमोहन सिंह एक सच्चे, ईमानदारी का तमगा लिए है मगर उनके पास आत्म -सम्मान नाम कि कोई चीज ही नही है | अगर जरा भी आत्म सम्मान होता तो ऐसे वाक्य बोलने से पहले सौ बार मर चुके होते, फिर भी ये वाक्य जुबान से बाहर नही निकलती |
एक सच्चे, ईमानदार प्रधानमंत्री कि गैर लोकतांत्रिक बयांन से क्या समझा जाय ? अगर ये वाक्य कांग्रेस का कोई लुच्चा नेता ( दिग्विजय सिंह ) कहा होता तो आम जनता लुच्चे की लुच्चई समझ कर सुन लेती | मगर यह वाक्य हमारे देश के प्रधानमंत्री जी बोले है तो कुछ न कुछ तो सोचना ही पड़ेगा ? कि दाल में काला है कि पूरी दाल ही काली है ?
जरा ध्यान से सोचा जाय तो ! मनमोहन सिंह ने ऐसा वयान क्यों दिया है ? मुस्लिमो को खुश करने के लिए ? अगर मुस्लिम खुश हो जाते है तो क्या होगा ? सच्चाई है कि कांग्रेस का वोट बैंक बढेगा | इससे कांग्रेस को फिर से कुर्सी मिलेगी, कांग्रेस फिर से सत्ता में आजायेगी (?) | अब मनमोहन सिंह (चाहते हुए भी अब प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे ) काश्मीर को मुस्लिम देश बनाने के लिए कहेंगे कि “ कश्मीर के मुसलमानों ने बहुत संघर्ष किये है | ६०००० हिन्दु पंडितो से पाकिस्तान कि सहायता से कश्मीर को खाली करने में बहुत मेहनत किये है, हिंदूओ के खून से कश्मीर कि घाटी को लाल रंगीन बनाया है, कितना मेहनत किया है मुस्लिम बेचारो ने | इन्हें इनकी बहादुरी पर बतौर कश्मीर को इस्लाम देश घोषित कर ही देना चाहिए | ताकि राहुल गाँधी से लेकर गाँधी परिवार के आने वाले वारिसों को कम से कम सात – आठ पुस्तो तक मुसलमानों का वोट मिलता रहे और भारत कि गद्दी पर बिराजमान रहे, जैसे जवाहरलाल नेहरू ने किये थे कश्मीर में धारा ३७० का प्रावधान करके |
शेष अगले पोस्ट में ..........

विश्व में हिन्दू देश एक अथवा दो नहीं वरन १३

जब लोग कहते हैं कि विश्व में केवल एक ही हिन्दू देश है तो यह पूरी तरह गलत है यह बात केवल वे ही कह सकते हैं जो हिन्दू की परिभाषा को नहीं जानते । इसके लिए सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि हिन्दू की परिभाषा क्या है ।
हिन्दुत्व की जड़ें किसी एक पैगम्बर पर टिकी न होकर सत्य, अहिंसा सहिष्णुता, ब्रह्मचर्य , करूणा पर टिकी हैं । हिन्दू विधि के अनुसार हिन्दू की परिभाषा नकारात्मक है परिभाषा है जो ईसाई मुसलमान व यहूदी नहीं है वे सब हिन्दू है। इसमें आर्यसमाजी, सनातनी, जैन सिख बौद्ध इत्यादि सभी लोग आ जाते हैं । एवं भारतीय मूल के सभी सम्प्रदाय पुर्नजन्म में विश्वास करते हैं और मानते हैं कि व्यक्ति के कर्मों के आधार पर ही उसे अगला जन्म मिलता है । तुलसीदास जीने लिखा है परहित सरिस धरम नहीं भाई । पर पीड़ा सम नहीं अधमाई । अर्थात दूसरों को दुख देना सबसे बड़ा अधर्म है एवं दूसरों को सुख देना सबसे बड़ा धर्म है । यही हिन्दू की भी परिभाषा है । कोई व्यक्ति किसी भी भगवान को मानते हुए, एवं न मानते हुए हिन्दू बना रह सकता है । हिन्दू की परिभाषा को धर्म से अलग नहीं किया जा सकता । यही कारण है कि भारत में हिन्दू की परिभाषा में सिख बौद्ध जैन आर्यसमाजी सनातनी इत्यादि आते हैं । हिन्दू की संताने यदि इनमें से कोई भी अन्य पंथ अपना भी लेती हैं तो उसमें कोई बुराई नहीं समझी जाती एवं इनमें रोटी बेटी का व्यवहार सामान्य माना जाता है । एवं एक दूसरे के धार्मिक स्थलों को लेकर कोई झगड़ा अथवा द्वेष की भावना नहीं है । सभी पंथ एक दूसरे के पूजा स्थलों पर आदर के साथ जाते हैं । जैसे स्वर्ण मंदिर में सामान्य हिन्दू भी बड़ी संख्या में जाते हैं तो जैन मंदिरों में भी हिन्दुओं को बड़ी आसानी से देखा जा सकता है । जब गुरू तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितो के बलात धर्म परिवर्तन के विरूद्ध अपना बलिदान दिया तो गुरू गोविन्द सिंह ने इसे तिलक व जनेउ के लिए उन्होंने बलिदान दिया इस प्रकार कहा । इसी प्रकार हिन्दुओं ने भगवान बुद्ध को अपना 9वां अवतार मानकर अपना भगवान मान लिया है । एवं भगवान बुद्ध की ध्यान विधि विपश्यना को करने वाले अधिकतम लोग आज हिन्दू ही हैं एवं बुद्ध की शरण लेने के बाद भी अपने अपने घरों में आकर अपने हिन्दू रीतिरिवाजों को मानते हैं । इस प्रकार भारत में फैले हुए पंथों को किसी भी प्रकार से विभक्त नहीं किया जा सकता एवं सभी मिलकर अहिंसा करूणा मैत्री सद्भावना ब्रह्मचर्य को ही पुष्ट करते हैं ।
इसी कारण कोई व्यक्ति चाहे वह राम को माने या कृष्ण को बुद्ध को या महावीर को अथवा गोविन्द सिंह को परंतु यदि अहिंसा, करूणा मैत्री सद्भावना ब्रह्मचर्य, पुर्नजन्म, अस्तेय, सत्य को मानता है तो हिन्दू ही है । इसी कारण जब पूरे विश्व में 13 देश हिन्दू देशों की श्रेणी में आएगें । इनमें वे सब देश है जहाँ बौद्ध पंथ है । भगवान बुद्ध द्वारा अन्य किसी पंथ को नहीं चलाया गया उनके द्वारा कहे गए समस्त साहित्य में कहीं भी बौद्ध शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है । उन्होंने सदैव इस धर्म कहा । भगवान बुद्ध ने किसी भी नए सम्प्रदाय को नहीं चलाया उन्होनें केवल मनुष्य के अंदर श्रेष्ठ गुणों को लाने उन्हें पुष्ट करने के लिए ध्यान की पुरातन विधि विपश्यना दी जो भारत की ध्यान विधियों में से एक है जो उनसे पहले सम्यक सम्बुद्ध भगवान दीपंकर ने भी हजारों वर्ष पूर्व विश्व को दी थी । एवं भगवान दीपंकर से भी पूर्व न जाने कितने सम्यंक सम्बुद्धों द्वारा यही ध्यान की विधि विपश्यना सारे संसार को समय समय पर दी गयी ( एसा स्वयं भगवान बुद्ध द्वारा कहा गया है । भगवान बुद्ध ने कोई नया पंथ नहीं चलाया वरन् उन्होंने मानवीय गुणों को अपने अंदर बढ़ाने के लिए अनार्य से आर्य बनने के लिए ध्यान की विधि विपश्यना दी जिससे करते हुए कोई भी अपने पुराने पंथ को मानते हुए रह सकता है । परंतु विधि के लुप्त होने के बाद विपश्यना करने वाले लोगों के वंशजो ने अपना नया पंथ बना लिया । परतुं यह बात विशेष है कि इस ध्यान की विधि के कारण ही भारतीय संस्कृति का फैलाव विश्व के 21 से भी अधिक देशों में हो गया एवं ११ देशों में बौद्धों की जनसंख्या अधिकता में हैं ।
हिन्दुत्व व बौद्ध मत में समानताएं -
१- दोनों ही कर्म में पूरी तरह विश्वास रखते हैं । दोनों ही मानते हैं कि अपने ही कर्मों के आधार पर मनुष्य को अगला जन्म मिलता है ।
2- दोनों पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं ।
3- दोनों में ही सभी जीवधारियों के प्रति करूणा व अहिंसा के लिए कहा गया है ।
4- दोनों में विभिन्न प्रकार के स्वर्ग व नरक को बताया गया है ।
5- दोनों ही भारतीय हैं भगवान बुद्ध ने भी एक हिन्दू सूर्यवंशी राजा के यहां पर जन्म लिया था इनके वंशज शाक्य कहलाते थे । स्वयं भगवान बुद्ध ने तिपिटक में कहा है कि उनका ही पूर्व जन्म राम के रूप में हुआ था ।
6- दोनों में ही सन्यास को महत्व दिया गया है । सन्यास लेकर साधना करन को वरीयता प्रदान की गयी है ।
7- बुद्ध धर्म में तृष्णा को सभी दुखों का मूल माना है । चार आर्य सत्य माने गए हैं ।
- संसार में दुख है
- दुख का कारण है
- कारण है तृष्णा
- तृष्णा से मुक्ति का उपाय है आर्य अष्टांगिक मार्ग । अर्थात वह मार्ग जो अनार्य को आर्य बना दे ।
इससे हिन्दुओं को भी कोई वैचारिक मतभेद नहीं है ।
8- दोनों में ही मोक्ष ( निर्वाण )को अंतिम लक्ष्य माना गया है एवं मोक्ष प्राप्त करने के लिए पुरूषार्थ करने को श्रेष्ठ माना गया है ।
दोनों ही पंथों का सूक्ष्मता के साथ तुलना करने के पश्चात यह निष्कर्ष बड़ी ही आसानी से निकलता है कि दोनों के मूल में अहिंसा, करूणा, ब्रह्मचर्य एवं सत्य है । दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता । और हिन्दओं का केवल एक देश नहीं बल्कि 13 देश हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं विश्व की कुल जनसंख्या में भारतीय मूल के धर्मों की संख्या 20 प्रतिशत है जो मुस्लिम से केवल एक प्रतिशत कम हैं । एवं हिन्दुओं की कुल जनसंख्या बौद्धों को जोड़कर 130 करोड़ है। है जो मुसलमानों से कुछ ही कम है । व हिन्दुओं के 13 देश थाईलैण्ड, कम्बोडिया म्यांमार, भूटान, श्रीलंका, तिब्बत, लाओस वियतनाम, जापान, मकाउ, ताईवान नेपाल व भारत हैं । इसी कारण जब लोग कहते हैं कि विश्व में केवल एक ही हिन्दू देश है तो यह पूरी तरह गलत है यह बात केवल वे ही कह सकते हैं जो हिन्दू की परिभाषा को नहीं जानते हैं ।